जिन्दगी
₹200.00
8 दिसम्बर, 1894 को लाहौर (अब पाकिस्तान) में जन्में श्री गुरुदत्त हिन्दी साहित्य के एक देदीप्यमान नक्षत्र थे। वह उपन्यास-जगत् के बेताज बादशाह थे। अपनी अनूठी साधना के बल पर उन्होंने लगभग दो सौ से अधिक उपन्यासों की रचना की और भारतीय संस्कृति का सरल एवं बोधगम्य भाषा में विवेचन किया। साहित्य के माध्यम से वेद-ज्ञान को जन-जन तक पहुंचाने का उनका प्रयास निस्सन्देह सराहनीय रहा है।
Description
गोपीचन्द्र जब धनवान् हुआ, तो गोपीशाह कहलाने लगा।
विवाह के समय गोपी आढ़त की एक दुकान पर मुनीमी करता था। उसे दस रुपये महीना वेतन मिलता था और दुकान पर प्रात: आठ बजे से रात आठ बजे तक काम करना पड़ता था। मध्याह्न के भोजन के लिए उसकी मां कभी दो परांठे मूली वाले और कभी चने की दाल वाले बनाकर एक पोटली में बांधकर उसे दे देती थी। मध्याह्न एक बजे अपनी दुकान के मालिक से एक अधेला लेकर वह पड़ोस के हलवाई से दही ख़रीदकर उसमें नमक-मिर्च डालकर परांठे खा लिया करता था।
विवाह के समय गोपी आढ़त की एक दुकान पर मुनीमी करता था। उसे दस रुपये महीना वेतन मिलता था और दुकान पर प्रात: आठ बजे से रात आठ बजे तक काम करना पड़ता था। मध्याह्न के भोजन के लिए उसकी मां कभी दो परांठे मूली वाले और कभी चने की दाल वाले बनाकर एक पोटली में बांधकर उसे दे देती थी। मध्याह्न एक बजे अपनी दुकान के मालिक से एक अधेला लेकर वह पड़ोस के हलवाई से दही ख़रीदकर उसमें नमक-मिर्च डालकर परांठे खा लिया करता था।
Additional information
Weight | 100 kg |
---|---|
Bookpages | |
author name | |
book_id |
Reviews
There are no reviews yet.