नगर परिमोहन
₹140.00
आधुनिक सभ्यता के विकास के साथ-साथ जनता देहातों से निकलकर नगरों की ओर आ रही है। इसमें कारण है-भौतिक विज्ञान में उन्नति।
सड़कें, नालियाँ, बिजली, पानी, भव्य भवन तथा अन्य सुख के सामान विज्ञान की उन्नति के साथ-साथ नगरों में उपलब्ध होते जाते हैं। इन सब साधनों की प्राप्ति में धन व्यय होता है। अतएव नगरों में रहने और शारीरिक सुख-सुविधा प्राप्त करने के लिए धन अत्यन्त आवश्यक वस्तु हो गई है।
Description
सतलुज और ब्यास नदियों के बीच के दुआबे में, ब्यास नदी के बाएँ किनारे से कुछ दूर, एक ऊँचे टीले पर, कंजेवाल नाम से एक गाँव बसा हुआ है। भूमि अत्यन्त ही उपजाऊ है और गाँव में कई खाते-पीते परिवार रहते हैं।
भूमि के मालिक तो धन-धान्य से सम्पन्न हैं ही, साथ ही भूमिरहित ‘कामे’ भी प्रसन्न हैं। गाँव के लोग परिश्रमी शान्तिप्रिय और ईमानदार हैं। यहाँ झगड़े भी बहुत कम होते हैं और इसके श्रेय, बहुत सीमा तक गाँव के चौधरी सुन्दरसिंह को है।
चौधरी का घर गाँव के बीचोंबीच एक खुले मैदान के किनारे पर था। घर पक्का लम्बा-चौड़ा था और उसके तीन भाग थे जिनमें चौधरी के तीन लड़के अपने-अपने परिवार सहित रहते थे। चौधरी का परिवार अच्छा-खासा बड़ा था। लड़के थे, उनकी पत्नियाँ थीं, और उनके बच्चे थे। सब मिल-मिलाकर बारह तेरह प्राणी थे और सब के सब बड़े आनन्द से परस्पर प्रेमपूर्वक रहते थे।
Additional information
Weight | 100 kg |
---|---|
Bookpages | |
author name | |
book_id |
Reviews
There are no reviews yet.