
Book Pages | 220 |
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Publish Date | 4-Apr-97 |
Author Name | Gurudutt |
Book Id | 5275 |
Details
ऐसी ही परिस्थिति विचारों, भावनाओं इत्यादि में भी हो जाती है। सिद्धान्तों को गौण मान, रीति-रिवाज, जो सिद्धान्तों के आवरण मात्र होते हैं, को मुख्य मानने वाले भी संसार में विद्यमान् हैं और उसके लिए लड़ मरते हैं।
मनुष्य तो प्रायः सब एक समान होते हैं, परन्तु भिन्न-भिन्न आवरणों में भिन्न-भिन्न प्रतीत होते हैं। एक गौरवर्णीय हिन्दुस्तानी यूरोपियन पहिरावे में युरोपियन प्रतीत होने लगता है, इसी प्रकाश केश और दाढ़ी रखने से कोई सिख प्रतीत होने लगता है और सुन्नत इत्यादि चिह्न बनाने से मुसलमान।