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आवरण

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जैसे वस्त्र शरीर का आवरण है अथवा शरीर आत्मा का आवरण है, इसी प्रकार विचार तथा भावनाओं का आवरण भी होता है। वस्त्र की रक्षा करने में कोई भी व्यक्ति शरीर को हानि नहीं पहुँचाएगा, न ही शरीर के लिए कोई आत्मा का हनन करना चाहेगा। इसी प्रकार विचारों में आवरण गौण और भीतर का संरक्षित भाव मुख्य माना जाना चाहिए।
कठिनाई वहाँ पड़ती है, जहाँ कोई आत्मा का अस्तित्व माने ही नहीं। ऐसे व्यक्ति के लिए शरीर ही सब कुछ होता है। अथवा कभी कोई शरीर को हेय और आवरण को मुख्य मानने लगे। इस अवस्था में आवरण उपयुक्त न होने पर मृत्यु तक हो सकती है।

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Description

ऐसी ही परिस्थिति विचारों, भावनाओं इत्यादि में भी हो जाती है। सिद्धान्तों को गौण मान, रीति-रिवाज, जो सिद्धान्तों के आवरण मात्र होते हैं, को मुख्य मानने वाले भी संसार में विद्यमान् हैं और उसके लिए लड़ मरते हैं।
मनुष्य तो प्रायः सब एक समान होते हैं, परन्तु भिन्न-भिन्न आवरणों में भिन्न-भिन्न प्रतीत होते हैं। एक गौरवर्णीय हिन्दुस्तानी यूरोपियन पहिरावे में युरोपियन प्रतीत होने लगता है, इसी प्रकाश केश और दाढ़ी रखने से कोई सिख प्रतीत होने लगता है और सुन्नत इत्यादि चिह्न बनाने से मुसलमान।

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