आशा निराशा
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‘‘माता जी ! पिताजी क्या काम करते हैं?’’
एक सात-आठ वर्ष का बालक अपनी मां से पूछ रहा था। मां जानती तो थी कि उसका पति क्या काम करता है, परन्तु हिन्दुस्तान की अवस्था का विचार कर वह अपने पुत्र को बताना नहीं चाहती थी कि उसका पिता उस सरकारी मशीन का एक पुर्जा है, जो देश को विदेशी हितों पर निछावर कर रही है। अतः उसने कह दिया, ‘‘मैं नहीं जानती। यह तुम उनसे ही पूछना।’’
Description
मां की अनभिज्ञता पर लड़के ने बताया, ‘‘मां ! मैं जानता हूँ। एक बड़ा सा मकान है। उसमें सैकड़ों लोग काम करते हैं। सब के मुखों पर पट्टी बंधी हुई रहती है। उनकी आंखें देखती तो हैं, परन्तु सब रंगदार चश्मा पहने हैं।
‘‘उस मकान के एक सजे हुए कमरे में एक बहुत सुन्दर स्वस्थ और सबल स्त्री एक कुर्सी पर बैठी है। कमरा मूल्यवान वस्तुओं से सजा हुआ है, परन्तु वह स्त्री, जो उस कमरे में मलिका की भांति विराजमान है, फटे-पुराने वस्त्रों में है। उसकी साड़ी पर पैबन्द लगे हैं। उस स्त्री के पीछे एक गोरा सैनिक हाथ में पिस्तौल लिए खड़ा है। स्त्री के हाथ-पाँवों में कड़ियाँ और बेड़ियाँ हैं। वह उस कुर्सी से लोहे की जंजीरों से बंधी हुई है।
Additional information
Weight | 100 kg |
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