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भैरवी चक्र

250.00

जीवात्मा कर्म करने में स्वतन्त्र है, परन्तु किये हुए कर्म का फल मिलना भी अवश्यम्भावी है। यह ईश्वरीय नियम है।
जो राज्य नागरिकों के निजी जीवन को नियम में बाँधने का यत्न करते हैं, वे राज्य नहीं कहलाते। राज्य तो परमात्मा का स्वरूप होता है। जीवन को नियम में बाँधने वाले राज्य दारोगा कहे जा सकते हैं, वे परमात्मा के प्रतिनिधि नहीं हो सकते।’

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Description

रात्रि क्लबों की सोच कोई नयी नहीं। सदियों पूर्व कश्मीर में भैरवी चक्र के रूप में इसका प्रचलन था । परन्तु इसे धार्मिक आवरण ओढ़ा दिया गया था। लेकिन इस प्रथा के कारण जो अव्यवस्था फैली उसे देखकर इस प्रथा के आयोजन कर्ता भी तौबा कर उठे। अतः इस प्रथा का रूप बदल कर विशुद्ध धार्मिक किया गया।

जीवन में कर्म और उसके फल की प्राप्ति तथा सामाजिक जीवन में व्यक्ति का कर्तव्य और उसकी परिणति तथा राज्य का उसमें अपना भाग।
भारतवर्ष में, जो कभी आर्यावर्त्त कहलाता था और जिसकी दुन्दुभि विश्व में गूँजती थी, उसमें वैदिक काल से आरम्भ कर इसके अन्तिम स्वर्ण काल तक अनेक काल आते गए। वे सब परिवर्तन के प्रतीक थे। समाज और समाज के घटक मनुष्य, के जीवन में परिवर्तन प्रकृति का नियम है और यह अवश्यम्भावी है। स्थिर जीवन अवगति का कारण बन जाता है। तब प्रकृति ही उसे अवगति की ओर धकेलने के लिए बाध्य हो जाती है।

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