अस्ताचल की ओर – भाग 2
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हिमालय की सुरम्य घाटी में मार्तण्ड नामक बस्ती में मार्तण्ड भवन के कुछ अन्तर पर नदी के किनारे एक पक्की कुटिया है। कुटिया के बाहर चबूतरे पर मृगचर्म पर पालथी मारे पण्डित शिवकुमार विराजमान थे। सूर्योदय का समय था, पण्डित शिवकुमार सूर्याभिमुख ध्यानस्थ बैठे थे और उदीयमान सूर्य की किरणें उनकी मुख छवि को द्योतित कर रही थीं।
Description
निश्चित अवधि में पण्डितजी की साधना सम्पूर्ण हुई और उन्होंने नेत्रों को उन्मीलित कर देखा तो पाया कि सूर्य उदित होकर ऊपर की ओर बढ़ रहा है। इससे उनको सन्तोष हुआ। पण्डितजी ने उदीयमान सूर्यदेव को प्रणाम किया और फिर आसन से उठकर महर्षि मार्तण्ड के आश्रम की ओर अभिमुख होकर नमस्कार किया।
तदनन्तर वहीं पर खड़े-खड़े उन्होंने पुकारा, ‘‘देवी !’’
कुटिया के भीतर से सुनायी दिया, ‘‘आयी देव !’’
Additional information
Weight | 100 kg |
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