Welcome to Hindi Sahitya Sadan - Oldest Book Publishers & Distributors.

दासता के नये रूप

150.00

‘दासता के नये रूप’ में उपन्यासकार ने स्वातन्त्र्योपलब्धि के अनन्तर देशवासियों की दास मनोवृत्ति और पतित आचरण का विश्लेषण किया है। इस दिशा में उनकी यह अत्यन्त सफल अभिव्यक्ति कही जा सकती है। उनका कहना है कि ‘सत्ताधीश लोग मनुष्य को दासता की श्रृंखलाओं में बाँधने का यत्न करते रहे हैं। राजनीतिक सत्ता अथवा आर्थिक व सामाजिक प्रभुत्व प्राप्त करके लोग अन्य मनुष्यों को अपनी सत्ता प्रभाव के अधीन रखने के लिए अनेकानेक प्रकारों का प्रयोग करते हैं। ये दासता उत्पन्न करने के उपाय हैं।

SKU: 5305 Category: Tag:
Add to Wishlist
Add to Wishlist
Compare

Description

आज से सहस्रों वर्ष पूर्व जब स्मृतिकार महाराज मनु ने यह लिखा था कि श्रुति में अयुक्तिसंगत बात नहीं हो सकती, तो उसने मानव की दासता की श्रृंखलाओं पर घोर आघात किया था। यही कारण है कि भारतीय आचार-व्यवहार अथवा मान्यताओं में युक्ति विशेष निर्णायक आधार रही हैं।

Additional information

Weight 100 kg
Bookpages

author name

,

book_id

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “दासता के नये रूप”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Quick Navigation
×
×

Cart