देश की हत्या
₹250.00
उपन्यासकार गुरुदत्त का जन्म जिस काल और जिस प्रदेश में हुआ उस काल में भारत के राजनीतिक क्षितिज पर बहुत कुछ विचित्र घटनाएँ घटित होती रही हैं। गुरुदत्त जी इसके प्रत्यक्षदृष्टा ही नहीं रहे अपितु यथासमय वे उसमें लिप्त भी रहे हैं। जिन लोगों ने उनके प्रथम दो उपन्यास ‘स्वाधीनता के पथ पर’ और ‘पथिक’ को पढ़ने के उपरान्त उसी श्रृंखला के उसके बाद के उपन्यासों को पढ़ा है उनमें अधिकांश ने यह मत व्यक्त किया है कि उपन्यासकार आरम्भ में गांधीवादी था, किंतु शनैः-शनैः वह गांधीवादी से निराश होकर हिन्दुत्ववादी हो गया है।
Description
‘देश की हत्या’ 1947 में जो देश-विभाजन हुआ, उसकी पृष्ठभूमि पर आधारित उपन्यास है। इस प्रकार भारतवर्ष में गांधी-युग की पृष्ठभूमि पर लिखे अपने उपन्यासों की श्रृंखला में यह अन्तिम कड़ी है। ‘स्वाधीनता के पथ पर’, ‘पथिक’, ‘स्वराज्य-दान’ और ‘विश्वासघात’ पहले ही पाठकों के सम्मुख आ चुके हैं। उसी क्रम में इस उपन्यास को लिखकर देश के इतिहास को इस युग के अन्त तक लिख दिया गया है।
Reviews
There are no reviews yet.