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भारत में राष्ट्र

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1.जीवन पद्घति का नाम धर्म है और धर्म का सार है कि जो व्यवहार अपने साथ किया जाना पसन्द नहीं करते वह किसी के साथ न करो।

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राष्ट्र एक अवस्था है। राष्ट्रवाद उस अवस्था की सार्थकता का सिद्धान्त है एवं राष्ट्रीयता उक्त अवस्था की भावना है।–गुरुदत्त
1947 से जब से भारत को स्वत्रन्त्रता मिली है, कांग्रेसी नेता, तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू से लेकर उनके छुटे-भय्ये तक, हिन्दू राष्ट्र की कल्पना का विरोध करते रहे हैं। हिन्दू राष्ट्र की भावना और घोषणा को देश के लिये घातक करते रहे हैं।

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