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मेघवाहन

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उपन्यासकार श्री गुरुदत्त जी का जीवन विगत 94 वर्षों से सतत साधनारत रहने के फलस्वरूप तपकर ऐसा कुन्दन बन गया है कि जिसकी तुलना अब किसी अन्य से नहीं अपितु उनसे ही की जा सकती है। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार सागर और आकाश की तुलना किसी अन्य से नहीं अपितु सागर और आकाश से ही की जा सकती है। वर्षों पूर्व श्री गुरुदत्त जी के किसी अभिनन्दन समारोह में दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के भूतपूर्व अध्यक्ष डॉ. विजयेन्द्र स्नातक ने उनके प्रति अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए कहा था—‘कोई भी उनको बैठे उनके दैदीप्यमान मुखाकृति को देखे तो यही अनुभव करेगा मानो मार्ग-निर्देशन करता हुआ-सा कोई तपस्वी बैठा है।’

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Description

आज से 94 वर्ष पूर्व लाहौर (अब पाकिस्तान) के निम्न मध्यवर्गीय पंजाबी आरोड़ा परिवार में उनका जन्म हुआ था।
बाल्यकाल से ही गुरुदत्त को लिखने-पढ़ने का चाव रहा। यही कारण है कि साधनहीन होने पर भी वे एम.एस-सी. की स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त कर सके। तदुपरान्त उनकी विद्यालयीन शिक्षा का भले ही अन्त हो गया हो किन्तु विद्यार्थी जीवन तो आज 94 वर्ष की आयु में भी निरन्तर उसी प्रकार चल रही है।

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