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- अन्तरिक्ष में
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- अपने पराये
- (1894 & 1989) शिक्षा : एम.एस.सी. प्रथम उपन्यास ‘स्वाधीनता के पथ पर’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं। विज्ञान की पृष्ठभूमि पर वेद,…
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- अमृत मन्थन (राम कथा-1)
- भगवान राम परमेश्वर का साक्षात अवतार थे अथवा नहीं, इस विषय पर कुछ न कहते हुए यह तो कहा ही जा सकता है कि उन्होंने अपने जीवन में जो कार्य…
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- अवतरण
- एक बार हमारे मुहल्ले के एक मन्दिर में महाभारत की कथा रखायी गयी। यह वे दिन थे, जब आर्यसमाज और सनातनधर्म सभा में शास्त्रार्थों की धूम थी। मुहल्ले के कुछ…
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- अस्ताचल की ओर – भाग 1
- पण्डित शिवकुमार को त्रिविष्टप की राजधानी में रहते हुए छत्तीस वर्ष व्यतीत हो चुके थे। वह अभी तक भी राजगुरु के पद पर आसीन था। यद्यपि जिस राजा ने उसको…
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- अस्ताचल की ओर – भाग 2
- हिमालय की सुरम्य घाटी में मार्तण्ड नामक बस्ती में मार्तण्ड भवन के कुछ अन्तर पर नदी के किनारे एक पक्की कुटिया है। कुटिया के बाहर चबूतरे पर मृगचर्म पर पालथी…
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- अस्ताचल की ओर – भाग 3
- श्री गुरुदत्त प्रथम उपन्यास ‘स्वाधीनता के पथ पर’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं। विज्ञान की पृष्ठभूमि पर वेद, उपनिषद्, दर्शन इत्यादि शास्त्रों…
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- आकाश पाताल
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- आगरा का लाल किला हिन्दू भवन है
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- आवरण
- जैसे वस्त्र शरीर का आवरण है अथवा शरीर आत्मा का आवरण है, इसी प्रकार विचार तथा भावनाओं का आवरण भी होता है। वस्त्र की रक्षा करने में कोई भी व्यक्ति…
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- आशा निराशा (out of stock)
- ‘‘माता जी ! पिताजी क्या काम करते हैं?’’ एक सात-आठ वर्ष का बालक अपनी मां से पूछ रहा था। मां जानती तो थी कि उसका पति क्या काम करता है,…
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- इतिहास की मृत्यु
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- इबलीस
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- कला
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- कामना
- भारतवर्ष की पवित्र व पावन-भूमि पर जन्म लेकर अनेकों साहित्यकारों ने यश व प्रसिद्धि की सीढ़ियां चढ़ीं। और पूरे विश्व में भारत के यश व गौरव को आलोकित किया।
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- कौन कहता है अकबर महान था?
- कौन कहता है अकबर महान था? New Revised Edition, New Computerize Book Composing, Big size, Big Font size, Hindi Edition
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- क्या भारत का इतिहास भारत के शत्रुओं द्वारा लिखा गया है ?
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- क्रिश्चियनिटी कृष्ण नीति है
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- खण्ड 1: मेघवाहन, सागर तरंग, विक्रमादित्य साहसांक
- मेघवाहन, सागर तरंग, विक्रमादित्य साहसांक (ऐतिहासिक उपन्यास) .
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- खण्ड 10- गंगा की धारा (मुगल काल पर उपन्यास)
- गंगा की धारा (मुगल काल पर उपन्यास)
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- खण्ड 2 – सहस्त्रबाहू, गगन के पार, अन्तरिक्ष में
- सहस्त्रबाहू, गगन के पार, अन्तरिक्ष में (वौनिक उपन्यास)
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- खण्ड 3 – कला, कामना, अनदेखे बन्धन (सामाजिक उपन्यास)
- कला, कामना, अनदेखे बन्धन (सामाजिक उपन्यास)
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- खण्ड 4 – एक और अनेक, मानव (भावनाप्रधान सामाजिक उपन्यास)
- एक और अनेक, मानव (भावनाप्रधान सामाजिक उपन्यास)
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- खण्ड 5 – परित्राणाय साधूनाम (सम्पूर्ण महाभारत कथा उपन्यास रूप में)
- खण्ड 5 - परित्राणाय साधूनाम (सम्पूर्ण महाभारत कथा उपन्यास रूप में)
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- खण्ड 6 – स्वाधीनता के पथ पर, पथिक (राजनीतिक श्रृंखला के उपन्यास)
- स्वाधीनता के पथ पर, पथिक (राजनीतिक श्रृंखला के प्रथम उपन्यास)
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- खण्ड 7 – स्वराज्यदान, दासता के नए रूप – राजनीतिक श्रृंखला
- स्वराज्यदान, दासता के नए रूप (राजनीतिक श्रृंखला की दो कढ़िया)
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- खण्ड 8 – देश की हत्या, विश्वासघात (राजनीतिक श्रृंखला के उपन्यास)
- देश की हत्या, विश्वासघात (राजनीतिक श्रृंखला के अन्तिम उपन्यास)
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- खण्ड 9 – प्रभातवेला, कुमार सम्भव, उमड़ती घटाएं (पौराणिक उपन्यास)
- प्रभातवेला, कुमार सम्भव, उमड़ती घटाएं (पौराणिक उपन्यास)
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- गृह संसद Currently Under Print
- रविवार मध्याह्न के भोजनोपरान्त सन्तराम का परिवार कोठी के ड्राइंग रूम में एकत्रित हो गया। सन्तराम ने घर में यह प्रथा चला रखी थी कि प्रति सप्ताह रविवार के दिन…
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- गोमांतक
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- घर की बात
- आजीवन साहित्य साधना में लीन रहने वाले गुरूदत्त का नाम अजर व अमर है; जिन्होंने अपने उत्कृष्ट साहित्य से अपना व भारत भूमि का नाम विदेशों में आलौकिक किया और…
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- चंचरीक
- कमला निर्धन माता-पिता की लड़की थी। उसके पिता एक धनी सेठ के घरेलू नौकर थे, इस कारण ये भी धनियों के एक मुहल्ले में रहते थे। साधु के मालिक लाला…
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- जमाना बदल गया – भाग 1
- एक कवि ने लिखा है : तू भी बदल फलक कि ज़माना बदल गया। वह कह रहा है कि हे भगवान् ! तू भी बदल। अर्थात् हमारे भाग्य को बदल,…
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- जीवन के कई रंग रे-लघु उपन्यास व कहानियाँ
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- जीवन ज्वार
- जिस प्रकार समुद्र में ज्वार उठता है और कालान्तर में भाटा आता है। इस पर भी यह सागर के वश की बात नहीं है कि वह उठते ज्वार को भाटे…
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- ताज महल मन्दिर भवन है
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- ताजमहल तेजोमहालय शिव मन्दिर है
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- दासता के नये रूप
- ‘दासता के नये रूप’ में उपन्यासकार ने स्वातन्त्र्योपलब्धि के अनन्तर देशवासियों की दास मनोवृत्ति और पतित आचरण का विश्लेषण किया है। इस दिशा में उनकी यह अत्यन्त सफल अभिव्यक्ति कही…
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- दिल्ली का लाल किला लाल कोट है
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- दो भद्र पुरुष
- एक लखपति था और दूसरा मजदूर। एक ठेकेदार था, दूसरा स्कूल-मास्टर। एक नई दिल्ली में बारहखम्भा रोड पर दुमंजिली कोठी पर रहता था, दूसरा बाजार सीताराम के कूचा पातीराम की…
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- धर्म तथा समाजवाद
- मानसिक दासता का यह लक्षण है कि व्यक्ति अपने स्वामी के गुणगान करने लगता है। शारीरिक दासता और मानसिक दासता में अन्तर होता है। शरीर से दास व्यक्ति मालिक की…
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- नए विचार नई बातें
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- नगर परिमोहन
- आधुनिक सभ्यता के विकास के साथ-साथ जनता देहातों से निकलकर नगरों की ओर आ रही है। इसमें कारण है-भौतिक विज्ञान में उन्नति। सड़कें, नालियाँ, बिजली, पानी, भव्य भवन तथा अन्य…
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- नास्तिक
- ‘‘पिताजी ! प्रज्ञा कहां है ?’’ ‘‘अपनी ससुराल में।’’ ‘‘तो आपने उसका विवाह कर दिया है ?’’ ‘‘नहीं, मैंने नहीं किया। उसने स्वयं कर लिया है, इसी कारण तुम्हें सूचना…
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- न्यायाधिकरण
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- पंकज
- बनते हुए नगरों में, जहाँ महल और अटारियाँ निर्मित होती हैं, वहाँ दो-चार गन्दी बस्तियाँ भी बन जाती हैं। नगर-निर्माण कार्य में जहाँ लाखों रुपये लगाने वाले ठेकेदारों और इमारती…
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- पड़ोसी
- प्रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं। विज्ञान की पृष्ठभूमि पर वेद, उपनिषद् दर्शन इत्यादि शास्त्रों का अध्ययन…
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- पत्रलता
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- पथिक
- युवावस्था से ही राजनीतिज्ञों से सम्पर्क, क्रान्तिकारियों से समीप का सम्बन्ध तथा इतिहास का गहन अध्ययन-इन सब की पृष्ठभूमि पर श्री गुरुदत्त ने कुछ उपन्यास लिखे हैं।
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- परम्परा
- भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर यह उपन्यास लिखा गया है। वैसे तो श्री राम के जीवन पर सैकड़ों ही नहीं, सहस्रों रचनाएं लिखी जा चुकी…
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- परम्परा (राम कथा-2)
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- परिमल
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- पाणिग्रहण Currently Under Print
- संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत के प्रभाव के कारण प्रतीची विचारों से प्रभावित इन्द्रनारायण तिवारी की मानसिक अवस्था एक समस्या बनी रहती थी।
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- पाप और पुण्य
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- प्रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं। विज्ञान की पृष्ठभूमि पर वेद, उपनिषद् दर्शन इत्यादि शास्त्रों का अध्ययन…
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- प्रजातंत्र अथवा वर्णाश्रम व्यवस्था
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- प्रतिशोध
- दुनियादारी में साधारणतः और राजनीति में विशेष रूप से यह माना जाता है कि शत्रु मित्र होता है। इस मान्यता पर राज्य और सांसारिक जीव कार्य करते भी देखे जाते…
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- प्रवंचना
- एक विख्यात कवि का कहना है
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- फतहपुर सीकरी हिन्दु नगर है
- फतहपुर सीकरी हिन्दु नगर है
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- बनवासी
- भारत का पूर्वांचल, अरुणोदय का प्रदेश, उसी प्रदेश के वन्य प्रान्तों में अनेक जन-जातियाँ निवास करती हैं। उनके अपने-अपने रीति-रिवाज हैं, परम्परायें हैं, प्रचलन हैं, पूजा अर्चना के विविध प्रकार…
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- बुद्धि बनाम बहुमत
- श्री गुरुदत्त जी ने पिछले 60 वर्षों से देश की राजनीति का गम्भीर अध्ययन किया है और लगभग 15 वर्ष तक सक्रिय राजनीति में भाग लिया है। राजनीति के गहन…
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- भगवान भरोसे
- अमर लेखक श्री गुरुदत्त की एक सशक्त कृति पाठकों के लिए प्रस्तुत है। एक सफल लेखक समाज में हो रहे परिवर्तनों को न केवल अपने पात्रों के माध्यम से अत्यन्त…
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- भाग्य का सम्बल
- भाग्य अवसर प्रदान करता है परन्तु भाग्य स्वमेव लँगड़ा होता है। पुरुषार्थ के बिना सफलता नहीं मिलती। भाग्य हमारे अधीन नहीं, और पुरुषार्थ हमारे अधीन है। जब पुरुषार्थ और भाग्य…
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- भारत गांधी नेहरु की छाया में
- भारत गांधी नेहरु की छाया में
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- भारतवर्ष का बृहद इतिहास (in 2 Volumes)
- Vaidic History of India, by Vaidic Research scholar Pandit Bhagwa Datt Satyashriva
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- भूल
- स्त्री, समाज में नये आने वाले सदस्यों की जननी है। स्त्री उनको समाज की उपयोगी अंग बनाने की प्रथम शिक्षिका है। वह समाज में सुख शान्ति का सृजन करती है।
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- भैरवी चक्र
- जीवात्मा कर्म करने में स्वतन्त्र है, परन्तु किये हुए कर्म का फल मिलना भी अवश्यम्भावी है। यह ईश्वरीय नियम है। जो राज्य नागरिकों के निजी जीवन को नियम में बाँधने…
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- मनुष्य और समाज
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- ममता
- भारतीय साहित्यकार में श्री गुरुदत्त जी का नाम अजर व अमर है। इनके द्वारा लिखे गये उपन्यास कथानक व रोचकता की दृष्टि से अत्यन्त ही सफल हैं। अपने प्रथम उपन्यास…
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- महाकाल
- हिन्दी के महान साहित्यकारों में से एक, श्री गुरुदत्त की कलम से निकले 250 ग्रन्थों में से एक सशक्त ऐतिहासिक उपन्यास है महाकाल ! इस घटना प्रधान उपन्यास के भावो…
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- माया जाल
- जब पुस्तक की पांडुलिपी लिख दी गई तो एक मित्र इसे पढ़ गए और पश्चात विस्मय से लेखक का मुख देखने लगे। उनका विस्मय करना स्वाभाविक था। वे समझ नहीं…
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- मेघवाहन
- उपन्यासकार श्री गुरुदत्त जी का जीवन विगत 94 वर्षों से सतत साधनारत रहने के फलस्वरूप तपकर ऐसा कुन्दन बन गया है कि जिसकी तुलना अब किसी अन्य से नहीं अपितु…
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- मैं न मानूँ
- अभिमानी का सिर नीचा होता है, परंतु इस संसार में ऐसे लोग भी हैं जो सिर नीचा होने पर भी, उसको नीचा नहीं मानते। ऐसे लोगों के लिए ही कहावत…
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- यह संसार
- प्रथम उपन्यास ‘स्वाधीनता के पथ पर’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं। विज्ञान की पृष्ठभूमि पर वेद, उपनिषद् दर्शन इत्यादि शास्त्रों का अध्ययन…
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- युद्ध और शान्ति
- भारतीय समाज-शास्त्र में समाज को चार वर्गों में विभक्ति किया गया है। यह विभाजन ईश्वरीय है।
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- राजा बहादुर की आज्ञा आयी कि भगवती लखनऊ से आने वाली गाड़ी से आ रहे मेहमानों को लाने के लिए स्टेशन पर पहुँच जाये। आज्ञा लाने वाला राजा बहादुर का…
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- स्वर्गीय श्री गुरुदत्त ने सामाजिक, सांस्कृतिक पारिवारिक उपन्यासों के साथ-साथ ऐतिहासिक उपन्यासों की भी रचना की है। इतिहास और ऐतिहासिक उपन्यास, के अन्तर को स्वयं श्री गुरुदत्त भली-भाँति जानते और…
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- भारतवर्ष में स्वराज्य-प्राप्ति के उपरान्त भौतिकवादियों का नया युग आया है। यों तो इसका बीजारोपण अंग्रेजी राज्य-काल में ही हो गया था, परन्तु इसका विस्तार स्वराज्य-प्राप्ति के उपरान्त ही हुआ…
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- मातृभूमि से अभिप्राय हिमालय पर्वत, गंगा-यमुना इत्यादि नदियाँ, पंजाब, सिंध, गुजरात, बंगाल इत्यादि भू-खंड नहीं, वरन् यहीं की समाज है। अतः देश-भक्ति वस्तुतः समाज की भक्ति को कहते हैं। भारत…
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- सफल जीवन के विषय में मतभेद हो सकता है। आर्थिक सम्पन्नता भी सफल जीवन का लक्षण है और मानसिक तथा आत्मिक निर्मलता भी इसका लक्षण कही जा सकती है। यह…
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- सामाजिक व्यवहार हैं खान-पान, विवाह-शादी, इकट्ठे सभा-जलसे मनाना, परस्पर इच्छानुसार मित्र-शत्रु स्वीकार करना; और मज़हब है देवी-देवताओं, पीर पैगम्बर को मानना तथा पूजा-पाठ, नमाज पढ़ना इत्यादि। ये व्यक्ति की निजी…
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- प्रस्तुत पुस्तक में सरदार बल्लभभाई पटेल के व्यक्तित्व एवं विचारों का सजीव चित्रण प्रस्तुत किया गया है। भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को वैचारिक एवं क्रियात्मक रूप में एक नई दिशा देने…
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- भाग्य और पुरुषार्थ में क्या प्रबल है ? यह विवाद नया नहीं है। यह आदिकाल से चला आता है। दोनों पक्ष-विपक्षों में प्रमाण तथा युक्तियाँ दी जाती हैं। कदाचित् यह…
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- ‘स्व-अस्तित्व की रक्षा’ स्व. श्री गुरुदत्त जी की उन पाण्डुलिपियों में से एक है जो अभी प्रकाश में नहीं आई हैं। पुस्तक में आरम्भ में ही बताया गया है कि…
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- ‘‘भूल जाना मनुष्यता की बात नहीं। मनुष्यों में और अन्य प्राणियों में स्मरण-शक्ति का ही अन्तर है। मनुष्य तो उन्नति कर रहा है किन्तु अन्य प्राणी उन्नति नहीं कर रहे…
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- स्वाधीनता के पथ पर
- टन......टन......टन........टन........। मन्दिर का घण्टा बज रहा था। देवता की आरती समाप्त हो चुकी थी। लोग चरणामृत पान कर अपने-अपने घर जा रहे थे। श्रद्धा, भक्ति, नमृता और उत्साह में लोग…
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- स्वार्थ
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- हम और तुम Currently Under Print
- हम और तुम
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- हास्यास्पद अंगे्रज़ी भाषा
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- हिन्दुत्व के पंच प्राण
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