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दुनियादारी में साधारणतः और राजनीति में विशेष रूप से यह माना जाता है कि शत्रु मित्र होता है। इस मान्यता पर राज्य और सांसारिक जीव कार्य करते भी देखे जाते हैं। परन्तु क्या यह मान्यता ठीक है ? यही इस पुस्तक का विषय है।
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दुनियादारी में साधारणतः और राजनीति में विशेष रूप से यह माना जाता है कि शत्रु मित्र होता है। इस मान्यता पर राज्य और सांसारिक जीव कार्य करते भी देखे जाते हैं। परन्तु क्या यह मान्यता ठीक है ? यही इस पुस्तक का विषय है।
जिनकी दृष्टि केवल बाहरी व्यवहार को देखती है अथवा जो कभी दूर की बात विचार करते ही नही, उनको उक्त सिद्धान्त जीवन के व्यवहार की एक महान् धुरी प्रतीत होती है। कार्य और कारणों का गम्भीरता से अध्ययन करनेवालों के लिए ‘शत्रु का शत्रु मित्र’ वाला सिद्धान्त सर्वथा मिथ्या ही प्रतीत होगा।
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