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गुण्ठन

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8 दिसम्बर 1894 को लाहौर (अब पाकिस्तान) में जन्मे श्री गुरुदत्त हिन्दी साहित्य के एक देदीप्यमान नक्षत्र थे। वह उपन्यास-जगत् के बेताज बादशाह थे। अपनी अनूठी साधना के बल पर उन्होंने लगभग दो सौ से अधिक उपन्यासों की रचना की और भारतीय संस्कृति का सरल एवं बोधगम्य भाषा में विवेचन किया। साहित्य के माध्मय से वेद-ज्ञान को जन-जन तक पहुंचाने का उनका प्रयास निस्सन्देह सराहनीय रहा है।

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Description

किसी माता-पिता के लिए जीवन की सबसे अधिक आनन्दप्रिय घड़ी वह होती है, जब वे अपनी संतान को साफ़-सुथरा, स्वस्थ, सुखी और सब प्रकार से सम्मानित देखते हैं। किसी सम्राट की भांति—जो प्रजा को धन-धान्य से सम्पन्न, सुख-सुविधा से युक्त और निर्भय देखता है—वे भी अपनी सन्तान को वैसा ही देखकर सुख का अनुभव करते हैं। वे जानते है कि यह उनके जीवन-भर के परीश्रम का फल है। ये हैं, जो वे निर्माण करने में सफल हुए हैं। ये सुन्दर हैं, सबल हैं, स्वस्थ हैं, सुखी हैं और लोक में सम्मानित हैं। यह विचार ही उनको आनन्दित करने के लिए पर्याप्त होता है।

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