दिग्विजय
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स्वामी शंकराचार्य ने अपने मात्र 33 वर्ष के जीवन में इस देश में जो भी सांस्कृतिक पुनरुत्थान किया, उसकी व्याख्या ही ‘दिग्विजय’ उपन्यास की विषयवस्तु है। तदपि यह स्वामी शंकराचार्य की जीवनी नहीं है, क्योंकि उनके व्यक्तिगत जीवन से सम्बन्धित किसी घटना का इसमें उल्लेख नहीं है। भारत की विभिन्न दिशाओं में घूम-घूमकर उन्होंने भारतीय संस्कृति और भारतीयों के धार्मिक जीवन पर जो प्रेरक एवं क्रान्तिकारी कार्य किया है उसका वर्णन ही औपन्यासिक रूप में इस पुस्तक में किया गया है।
Description
वेदादि ब्राह्मण ग्रंथों के आधार पर आदि शंकराचार्य द्वारा आर्य धरम के पुनरुद्धार के प्रयास पर आधारित पुस्तक
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