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लालसा

150.00

राजा बहादुर की आज्ञा आयी कि भगवती लखनऊ से आने वाली गाड़ी से आ रहे मेहमानों को लाने के लिए स्टेशन पर पहुँच जाये।
आज्ञा लाने वाला राजा बहादुर का विशिष्ट सिपाही रामहर्ष रात के दस बजे पहुँचा था और लखनऊ वाली गाड़ी रात के डेढ़ बजे आती थी। उस समय भगवती सो रहा था। आज्ञा उसकी माँ ने प्राप्त की थी। माँ के पास घड़ी तो थी नहीं, इस कारण वह चिन्ता करने लगी कि किस प्रकार वह अपने पुत्र को जगाकर समय पर स्टेशन भेजेगी।

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Description

भगवती चरण की माँ का मकान रेल के स्टेशन से एक फलाँग के अन्तर पर था। माँ विचार कर रही थी कि यदि वह जागती रहकर कान रखेगी तो आती रेल की सीटी की आवाज सुनकर पुत्र को जगाकर स्टेशन पर भेज देगी।
सर्दी का मौसम था। मकान के भीतर द्वार बन्द करके बैठे रहने से सीटी की आवाज नहीं भी सुनाई दे सकती थी। अतः उसने अपनी खाट मकान के प्रांगण के द्वार पर डाल दी और रजाई लपेटकर वहाँ जा बैठी। दिन-भर खेतों की देख-रेख और घर पर कूटने-पीसने के काम में व्यस्त रहने से वह थकी हुई थी। ज्यों ही रजाई में गरम हुई कि सो गयी। भगवती भी दिन भर राजा बहादुर के काम की भागदौड़ से थका हुआ अपने कमरे में गहरी नींद सो रहा था। माँ की नींद खुली, रेल की सीटी की आवाज सुनकर। वह हड़बड़ाकर उठी और भागकर मकान में जाकर, भगवती को हिला-हिलाकर जगाने लगी। भगवती जागा तो पूछने लगा, माँ ! क्या है ?”

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