Welcome to Hindi Sahitya Sadan - Oldest Book Publishers & Distributors.

अस्ताचल की ओर – भाग 1

200.00

पण्डित शिवकुमार को त्रिविष्टप की राजधानी में रहते हुए छत्तीस वर्ष व्यतीत हो चुके थे। वह अभी तक भी राजगुरु के पद पर आसीन था। यद्यपि जिस राजा ने उसको इस पद पर प्रतिष्ठित किया था उस राजा संजीवायन लामा का देहान्त हो चुका था। उसका देहान्त तो शिवकुमार के आने के दस वर्ष उपरान्त ही हो गया था। उस समय जो युवराज पद पर था वह इस समय राजा के पद पर आसीन हो राज्य कर रहा था। उसको राज्य करते हुए छब्बीस वर्ष हो गये थे।
संजीवायन लामा ने तत्कालीन महामन्त्री त्रिभुवन थापा के पुत्र कीर्तिमान को युवराज पद पर प्रतिष्ठित किया था। वही इस समय त्रिविष्टप का राजा था। महामन्त्री त्रिभुवन का भी बहुत पहले देहान्त हो चुका था।

SKU: 5423 Category: Tag:
- +
Add to Wishlist
Add to Wishlist
Compare
Compare

Description

इस अवधि में राज्य और देश की स्थिति में भी पर्याप्त अन्तर आ चुका था। उस समय, जब शिवकुमार इस देश में आया था, इस देश की जनसंख्या बहुत कम थी। किन्तु अब इसके ग्रामों और नगरों की जनसंख्या लगभग द्विगुणित हो गई थी। तदपि राज्य-व्यवस्था इतनी सुव्यवस्थित थी कि न तो कोई व्यक्ति भूखा सोता था और न ही कोई निर्वस्त्र रहता था। जीवन अति सुलभ और सरल था। उस राज्य में अन्न, वस्त्र और रहने के लिए निवास योग्य भूमि आदि बड़ी ही सुगमता से उपलब्ध थे।

Quick Navigation
×
×

Cart

Quick Navigation