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माया जाल

85.00

जब पुस्तक की पांडुलिपी लिख दी गई तो एक मित्र इसे पढ़ गए और पश्चात विस्मय से लेखक का मुख देखने लगे। उनका विस्मय करना स्वाभाविक था। वे समझ नहीं सके थे कि एक लिखा-पढ़ा अनुभवी लेखक मदारी और जादू के खेलों पर पुस्तक लिखकर क्या कहना चाहता है ? आज कहे जाने वाले उन्नत समाज में इन बातों की चर्चा लज्जा की बात मानी जाती है।

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Description

खेतों के आगे खेत, जहाँ तक दृष्टि जाती थी, फैले हुए थे। गाँव के बाहर खड़े होकर पश्चिम की ओर देखने से ऐसा प्रतीत होता था कि खेतों का फैलाव वहाँ तक है जहाँ आकाश भूमि से आकर मिल जाता है। बीच-बीच में कहीं-कहीं बबूल, आम, और सिरस के पेड़ ऐसे खड़े प्रतीत होते थे जैसे खेतों में प्रहरी खड़े हों। ये उस विस्तृत दृश्य को देखने में बाधा नहीं थे, प्रत्युत उसको रूप-रंग दे रहा थे।

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