‘अनदेखे बंधन’ जैसा कि नाम से ही विदित होता है, यह गुरुदत्तजी का एक सामाजिक उपन्यास है जिसमें उन्होंने ग्रामीण व शहरी विचारधाराओं का बड़ा ही अनोखा समन्वय प्रस्तुत…
इस पुस्तक के लेखक श्री वैद्य गुरुदत्त जम्मू-कश्मीर आन्दोलन में डॉ.श्यामाप्रसाद मुखर्जी के साथ दो बार जेल भेजे गए थे। पहली बार जब डॉ.साहब, श्री निर्मलचन्द्र चटर्जी (प्रधान, हिन्दू महासभा),…
(1894 & 1989) शिक्षा : एम.एस.सी. प्रथम उपन्यास ‘स्वाधीनता के पथ पर’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं। विज्ञान की पृष्ठभूमि पर वेद,…
एक बार हमारे मुहल्ले के एक मन्दिर में महाभारत की कथा रखायी गयी। यह वे दिन थे, जब आर्यसमाज और सनातनधर्म सभा में शास्त्रार्थों की धूम थी। मुहल्ले के कुछ…
हिमालय की सुरम्य घाटी में मार्तण्ड नामक बस्ती में मार्तण्ड भवन के कुछ अन्तर पर नदी के किनारे एक पक्की कुटिया है। कुटिया के बाहर चबूतरे पर मृगचर्म पर पालथी…
श्री गुरुदत्त प्रथम उपन्यास ‘स्वाधीनता के पथ पर’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं। विज्ञान की पृष्ठभूमि पर वेद, उपनिषद्, दर्शन इत्यादि शास्त्रों…
भारतवर्ष की पवित्र व पावन-भूमि पर जन्म लेकर अनेकों साहित्यकारों ने यश व प्रसिद्धि की सीढ़ियां चढ़ीं। और पूरे विश्व में भारत के यश व गौरव को आलोकित किया।
‘‘सब गधे इकट्ठे हे गये हैं।’’ शहंशाह अपनी रिश्ते में अम्मी, परन्तु मन से प्रेमिका और प्रत्यक्ष में बहन महताब बेगम को कह रहा था। शहंशाह अजमेर से अभी-अभी लौटा…
हमारी यह मान्यता रही है कि उपन्यास-सम्राट् स्व० श्री गुरुदत्त कालातीत साहित्य के स्रष्टा थे। साहित्य का, विशेषतया उपन्यास साहित्य का, सबसे बड़ा समालोचन समय होता है। सामान्यता यह देखने…
8 दिसम्बर 1894 को लाहौर (अब पाकिस्तान) में जन्मे श्री गुरुदत्त हिन्दी साहित्य के एक देदीप्यमान नक्षत्र थे। वह उपन्यास-जगत् के बेताज बादशाह थे। अपनी अनूठी साधना के बल पर…
रविवार मध्याह्न के भोजनोपरान्त सन्तराम का परिवार कोठी के ड्राइंग रूम में एकत्रित हो गया। सन्तराम ने घर में यह प्रथा चला रखी थी कि प्रति सप्ताह रविवार के दिन…
आजीवन साहित्य साधना में लीन रहने वाले गुरूदत्त का नाम अजर व अमर है; जिन्होंने अपने उत्कृष्ट साहित्य से अपना व भारत भूमि का नाम विदेशों में आलौकिक किया और…
यह जगत एक अत्यन्त आश्चर्यमय, विस्मयजनक और रहस्ययुक्त घटना है। यह कितना बड़ा है, इसमें क्या-क्या पदार्थ हैं, वे पदार्थ कहां कहां है, कैसे बने वे, और कब बने और…
यह उपन्यास चार भागों में हैं जिनका विवरण इस प्रकार है: भगवान् हमारे भाग्य को बदलेगा अथवा नहीं, पता नहीं, परन्तु ज़माना तो बदल ही रहा है। क्यों ? इसलिए…
8 दिसम्बर, 1894 को लाहौर (अब पाकिस्तान) में जन्में श्री गुरुदत्त हिन्दी साहित्य के एक देदीप्यमान नक्षत्र थे। वह उपन्यास-जगत् के बेताज बादशाह थे। अपनी अनूठी साधना के बल पर…
‘दासता के नये रूप’ में उपन्यासकार ने स्वातन्त्र्योपलब्धि के अनन्तर देशवासियों की दास मनोवृत्ति और पतित आचरण का विश्लेषण किया है। इस दिशा में उनकी यह अत्यन्त सफल अभिव्यक्ति कही…
उपन्यासकार गुरुदत्त का जन्म जिस काल और जिस प्रदेश में हुआ उस काल में भारत के राजनीतिक क्षितिज पर बहुत कुछ विचित्र घटनाएँ घटित होती रही हैं। गुरुदत्त जी इसके…
एक लखपति था और दूसरा मजदूर। एक ठेकेदार था, दूसरा स्कूल-मास्टर। एक नई दिल्ली में बारहखम्भा रोड पर दुमंजिली कोठी पर रहता था, दूसरा बाजार सीताराम के कूचा पातीराम की…
मानसिक दासता का यह लक्षण है कि व्यक्ति अपने स्वामी के गुणगान करने लगता है। शारीरिक दासता और मानसिक दासता में अन्तर होता है। शरीर से दास व्यक्ति मालिक की…
क्या आज का ‘‘नपुंसक’’ हिन्दू नाबालिग हकीकत की निर्मम हत्या से कुछ पाठ सीखेगा ? आज का हिन्दू नपुंसकता की पराकाष्ठा पर पहुँच चुका है किंतु उसको ‘क्लैब्यं मा स्म…
आधुनिक सभ्यता के विकास के साथ-साथ जनता देहातों से निकलकर नगरों की ओर आ रही है। इसमें कारण है-भौतिक विज्ञान में उन्नति। सड़कें, नालियाँ, बिजली, पानी, भव्य भवन तथा अन्य…
‘‘पिताजी ! प्रज्ञा कहां है ?’’ ‘‘अपनी ससुराल में।’’ ‘‘तो आपने उसका विवाह कर दिया है ?’’ ‘‘नहीं, मैंने नहीं किया। उसने स्वयं कर लिया है, इसी कारण तुम्हें सूचना…
बनते हुए नगरों में, जहाँ महल और अटारियाँ निर्मित होती हैं, वहाँ दो-चार गन्दी बस्तियाँ भी बन जाती हैं। नगर-निर्माण कार्य में जहाँ लाखों रुपये लगाने वाले ठेकेदारों और इमारती…
प्रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं। विज्ञान की पृष्ठभूमि पर वेद, उपनिषद् दर्शन इत्यादि शास्त्रों का अध्ययन…
युवावस्था से ही राजनीतिज्ञों से सम्पर्क, क्रान्तिकारियों से समीप का सम्बन्ध तथा इतिहास का गहन अध्ययन-इन सब की पृष्ठभूमि पर श्री गुरुदत्त ने कुछ उपन्यास लिखे हैं।
हिन्दुओं में यह किंवदन्ति प्रचलित है कि यदि महाभारत की कथा की जायेगी तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में महाभारत मच जायेगा। मैं बाल्यकाल से इस…
संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत के प्रभाव के कारण प्रतीची विचारों से प्रभावित इन्द्रनारायण तिवारी की मानसिक अवस्था एक समस्या बनी रहती थी।
प्रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं। विज्ञान की पृष्ठभूमि पर वेद, उपनिषद् दर्शन इत्यादि शास्त्रों का अध्ययन…
दुनियादारी में साधारणतः और राजनीति में विशेष रूप से यह माना जाता है कि शत्रु मित्र होता है। इस मान्यता पर राज्य और सांसारिक जीव कार्य करते भी देखे जाते…
भारत का पूर्वांचल, अरुणोदय का प्रदेश, उसी प्रदेश के वन्य प्रान्तों में अनेक जन-जातियाँ निवास करती हैं। उनके अपने-अपने रीति-रिवाज हैं, परम्परायें हैं, प्रचलन हैं, पूजा अर्चना के विविध प्रकार…
भाग्य अवसर प्रदान करता है परन्तु भाग्य स्वमेव लँगड़ा होता है। पुरुषार्थ के बिना सफलता नहीं मिलती। भाग्य हमारे अधीन नहीं, और पुरुषार्थ हमारे अधीन है। जब पुरुषार्थ और भाग्य…
जनवरी सन् 2000 में प्रकाशित ‘‘भाव और भावना’’ में श्री गुरुदत्त जी ने मुख्य-मुख्य राजनीतिक घटनाओं का उल्लेख करते हुए उन घटनाओं का अपने मन पर प्रभाव तथा प्रतिक्रिया व्यक्त…
रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं। विज्ञान की पृष्ठभूमि पर वेद, उपनिषद् दर्शन इत्यादि शास्त्रों का अध्ययन…
गुरुदत्त जी ने एक बार किसी गोष्ठी में कहा था-मैंने प्रत्येक समस्या को अपने लिये एक चुनौती माना है। ‘भाव और भावना’ उनके ऐसे संस्मरणों का संग्रह है। जिनसे उनके…
जीवात्मा कर्म करने में स्वतन्त्र है, परन्तु किये हुए कर्म का फल मिलना भी अवश्यम्भावी है। यह ईश्वरीय नियम है। जो राज्य नागरिकों के निजी जीवन को नियम में बाँधने…
भारतीय साहित्यकार में श्री गुरुदत्त जी का नाम अजर व अमर है। इनके द्वारा लिखे गये उपन्यास कथानक व रोचकता की दृष्टि से अत्यन्त ही सफल हैं। अपने प्रथम उपन्यास…
हिन्दी के महान साहित्यकारों में से एक, श्री गुरुदत्त की कलम से निकले 250 ग्रन्थों में से एक सशक्त ऐतिहासिक उपन्यास है महाकाल ! इस घटना प्रधान उपन्यास के भावो…
उपन्यासकार श्री गुरुदत्त जी का जीवन विगत 94 वर्षों से सतत साधनारत रहने के फलस्वरूप तपकर ऐसा कुन्दन बन गया है कि जिसकी तुलना अब किसी अन्य से नहीं अपितु…
प्रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं। विज्ञान की पृष्ठभूमि पर वेद, उपनिषद दर्शन इत्यादि शास्त्रों का अध्ययन…
प्रथम उपन्यास ‘स्वाधीनता के पथ पर’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं। विज्ञान की पृष्ठभूमि पर वेद, उपनिषद् दर्शन इत्यादि शास्त्रों का अध्ययन…
स्वर्गीय श्री गुरुदत्त ने सामाजिक, सांस्कृतिक पारिवारिक उपन्यासों के साथ-साथ ऐतिहासिक उपन्यासों की भी रचना की है। इतिहास और ऐतिहासिक उपन्यास, के अन्तर को स्वयं श्री गुरुदत्त भली-भाँति जानते और…
भारतवर्ष में स्वराज्य-प्राप्ति के उपरान्त भौतिकवादियों का नया युग आया है। यों तो इसका बीजारोपण अंग्रेजी राज्य-काल में ही हो गया था, परन्तु इसका विस्तार स्वराज्य-प्राप्ति के उपरान्त ही हुआ…
वीर पुरुषों के बलिदान की कहानी सदा से प्रेरणा का स्त्रोत रही है। मैजिनीगैरीबाल्डी आदि नरपुंगवों की वीर गाथाएँ आज भी विश्व मानव की दमनियों में ऊष्ण रक्त का संचार…
तक्षशिला विश्वविद्यालय में वसंत महोत्सव मनाया जा रहा था। फाल्गुन सुदी पञ्चमी से यह उत्सव आरम्भ होकर दस दिन तक चला करता था। विश्वविद्यालय के विद्यार्थी-गण, अध्यापक-वर्ग और देश-विदेशों से…
मातृभूमि से अभिप्राय हिमालय पर्वत, गंगा-यमुना इत्यादि नदियाँ, पंजाब, सिंध, गुजरात, बंगाल इत्यादि भू-खंड नहीं, वरन् यहीं की समाज है। अतः देश-भक्ति वस्तुतः समाज की भक्ति को कहते हैं। भारत…
सामाजिक व्यवहार हैं खान-पान, विवाह-शादी, इकट्ठे सभा-जलसे मनाना, परस्पर इच्छानुसार मित्र-शत्रु स्वीकार करना; और मज़हब है देवी-देवताओं, पीर पैगम्बर को मानना तथा पूजा-पाठ, नमाज पढ़ना इत्यादि। ये व्यक्ति की निजी…
प्रस्तुत पुस्तक में सरदार बल्लभभाई पटेल के व्यक्तित्व एवं विचारों का सजीव चित्रण प्रस्तुत किया गया है। भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को वैचारिक एवं क्रियात्मक रूप में एक नई दिशा देने…
भाग्य और पुरुषार्थ में क्या प्रबल है ? यह विवाद नया नहीं है। यह आदिकाल से चला आता है। दोनों पक्ष-विपक्षों में प्रमाण तथा युक्तियाँ दी जाती हैं। कदाचित् यह…
‘‘भूल जाना मनुष्यता की बात नहीं। मनुष्यों में और अन्य प्राणियों में स्मरण-शक्ति का ही अन्तर है। मनुष्य तो उन्नति कर रहा है किन्तु अन्य प्राणी उन्नति नहीं कर रहे…
टन......टन......टन........टन........। मन्दिर का घण्टा बज रहा था। देवता की आरती समाप्त हो चुकी थी। लोग चरणामृत पान कर अपने-अपने घर जा रहे थे। श्रद्धा, भक्ति, नमृता और उत्साह में लोग…
‘हिन्दुत्व की यात्रा’ नाम से ही पुस्तक का प्रतिपाद्य विषय स्पष्ट हो जाता है। प्रस्तुत पुस्तक द्वारा विद्वान लेखक ने आदिकाल से आरम्भ कर अब तक के आर्य-हिन्दू की जीवन…